गृहमंत्री का कार्यभार संभालते अमित शाह लगातार एक्शन में हैं.मंगलवार सुबह शुरू हुआ शाह की बैठकों का सिलसिला लंबा चला। इनमें जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की तैयारियों से लेकर अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा पर लंबी चर्चाएं हुई। बैठक के बाद उन्होंने प्रदेश राज्यपाल सतपाल मलिक से फोन पर बात की। बताया जा रहा है कि बैठक में शाह ने गृह सचिव राजीव गौबा और कश्मीर मामलों के अतिरिक्त सचिव ज्ञानेश कुमार के साथ परिसीमन आयोग के गठन संबंधी फैसले लिए।
कब लगा था परिसीमन ?
दरअसल जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान है. इस संविधान के मुताबिक हर 10 साल बाद निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाना चाहिए. ऐसे में राज्य में सीटों का परिसीमन 2005 में होना था लेकिन राज्य में 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला की सरकार ने इस पर 2026 तक रोक लगा दी थी. 2002 में अब्दुल्ला सरकार ने जम्मू-कश्मीर जनप्रतिनिधित्व कानून, 1957 और जम्मू-कश्मीर के संविधान में बदलाव करते हुए यह फैसला लिया था. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को सही ठहराया था. लेकिन अब फिर से परिसीमन के प्रयास किए जाने की बात चल रही है.
Distressed to hear about GoIs plan to redraw assembly constituencies in J&K. Forced delimitation is an obvious attempt to inflict another emotional partition of the state on communal lines.Instead of allowing old wounds to heal, GoI is inflicting pain on Kashmiris
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) June 4, 2019
पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती हैं परेशान
इस मामले में जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने एक ट्वीट कर इस मामले में अपनी परेशानी जाहिर की है. उन्होंने लिखा है, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा क्षेत्रों को पुर्नसीमन की भारत सरकार की योजना के बारे में सुनकर परेशान हूं. थोपा हुआ परिसीमन राज्य के एक और भावनात्मक विभाजन को सांप्रदायिक आधार पर भड़काने का एक स्पष्ट प्रयास है. पुराने घावों को ठीक करने के बजाए इसका मकसद कश्मीरियों के दर्द को और बढ़ाना है.
नेशनल कांफ्रेंस के उप प्रधान उमर अब्दुल्ला ने जताया विरोध
केंद्र की जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की सुगबुगाहट के बाद से ही राज्य के राजनीतिक गलियारों में गहमागहमी तेज हो गयी है। जहां एक तरफ कांग्रेस ने इस परिसीमन का सपोर्ट किया है वहीं नेकां के उप प्रधान उमर अब्दुल्ला ने इसका कड़ा विरोध जताते हुए कहा है कि अगर ऐसा हुआ तो वह इसका कड़ा विरोध करेंगे।
Will strongly oppose any attempt on delimitation in Jammu and Kashmir: Omar Abdullah
Read @ANI story | https://t.co/jzjqRs3Jqf pic.twitter.com/z4MqH8BlvW
— ANI Digital (@ani_digital) June 4, 2019
अभी जम्मू-कश्मीर में कितनी सीटें
जम्मू-कश्मीर में कुल 111 सीटें हैं लेकिन 24 खाली हैं. दरअसल ये 24 सीटें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर क्षेत्र में आती हैं. जिन्हें जम्मू-कश्मीर के संविधान के सेक्शन 47 के मुताबिक खाली छोड़ा गया है. बाकी पर चुनाव होता है. इनमें 46 कश्मीर डिवीजन में आती हैं, जबकि 37 सीटें जम्मू और चार सीटें लद्दाख डिवीजन में हैं. इसके अलावा दो अन्य सीटों पर प्रतिनिधि नामांकित किए जाते हैं.
क्या है पीओके में चुनाव का इतिहास
भारत की आजादी से पहले और आजादी वक्त तक कश्मीर राजा हरिसिंह की रियासत हुआ करती थी. लेकिन बंटावारे के समय भूभाग को लेकर विवाद हो गया. बाद में जब जम्मू-कश्मीर विधानसभाओं का परिसीमन हुआ तो पाकिस्तान और चीन ने भारत के 24 विधानसभा क्षेत्रों को कब्जा कर चुके थे. तब इलेक्शरन कमीशन ने इन 24 विधानसभा क्षेत्रों को रिजर्व रखा है.
पीओके में लंबे समय से अपने प्रतिनिधि की मांग
जब जम्मू कश्मीर में धारा 370 और 35A लगने के बाद चुनावों की शुरुआत हुई. लेकिन इनमें पीओके में रहने वालों का कोई प्रतिनिधित्व शामिल नहीं हो पाया. बाद में पीओके में रहने वाले लोग हिंसा से बचने के लिए घाटी में आकर रहने लगे. अब वे अपने अधिकारों के लिए लगातार अपने बीच के लोगों में से कुछ लोगों का प्रतिनिधित्व मांगते हैं. बीजेपी इसके लिए एक प्लान लेकर आ रही है.