अमेठी। लोकसभा चुनाव, 2019 में अमेठी सीट जीतने वाली स्मृति ईरानी के करीबी सहयोगी और पूर्व ग्राम प्रधान सुरेंद्र सिंह की हत्या मामले में नामजद तीन आरोपितों को अरेस्ट किया गया है।
अरेस्ट आरोपितों के नाम हैं
- नसीम
- धर्मराज
- रामचन्द्र
इन तीनों को आज सोमवार को गिरफ्तार किया गया। पता किया जा रहा है कि अब भी दो लोग पुलिस की पकड़ से दूर हैं। पुलिस अधीक्षक-एसपी राजेश कुमार ने बताया कि चुनावी साजिश में ये मर्डर नहीं किये गये हैं।
आरोपितों की पूर्व प्रधान से पुरानी रंजिश थी। इससे पहले भी इनके खिलाफ केस दर्ज किया गया था। पुलिस टीमें अब भी फरार लोगों को अरेस्ट करने के लिए दबिश दे रही हैँ, जल्द ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। इसके साथ ही इस मामले के सभी कारणों को टटोला भी जा रहा है।
पांच लोगों के खिलाफ हत्या और साजिश के मामले हुए दर्ज
अमेठी में शनिवार- 25 मई को देर रात स्मृति ईरानी के करीबी बीजेपी नेता और प्रधान रहे सुरेंद्र सिंह की गोली मारकर हत्या कर गई थी। अगले दिन इतवार 26 मई की शाम बड़े भाई नरेंद्र सिंह का बयान जामो पुलिस थाने में दर्ज किया गया। इसमें पुलिस ने वसीम, नसीम, गोलू सिंह, रामचंद्र बीडीसी और रामनाथ गुप्ता के खिलाफ केस दर्ज किया गया था।
आम चुनाव में जिस इलाके में बीजेपी की सबसे बुरी हालात रहती थी, उसी क्षेत्र में उम्मीद बनकर बरौलिया के पूर्व प्रधान सुरेंद्र सिंह उभरे थे। पांच साल पहले हुए आम चुनाव में जब स्मृति ईरानी पहली बार राहुल गांधी के मुकाबले में अमेठी आयीं थीं, उस समय बरौलिया गांव में उन्हें सबसे ज्यादा वोट मिले थे। बरौलिया में मिले रिकॉर्ड वोटों ने सुरेंद्र सिंह को स्मृति ईरानी के करीब लाकर दिया था।
2014 के आम चुनाव से ठीक बाद जब बरौलिया में आग लगी, तो सुरेंद्र की पहल पर सबसे पहले हार के बाद भी स्मृति ईरानी पीड़ितों की मदद के लिए इस गांव पहुंचीं। सुरेंद्र की मेहनत और बरौलिया में मिले रिकॉर्ड मतों ने स्मृति की नजर में इस पूर्व प्रधान के कद को काफी बड़ा कर दिया था। यूपी से राज्यसभा एमपी बने मनोहर पर्रिकर ने स्मृति की जिद पर ही बरौलिया गांव को ‘प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना’ के तहत गोद लिया और पिछले पांच साल में गांव में सोलह करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत से विकास कार्य करवाये गये। सुरेंद्र सिंह 2005 में पहली बार बरौलिया के ग्राम प्रधान चुने गये थे। इससे पहले वह बीजेपी संगठन में जामो मंडल के अध्यक्ष भी रह चुके थे, लेकिन उनकी अचानक हत्या होने के बाद एक सवाल तो सबके मन में है कि राजनीति के शह-मात के खेल में परदे के पीछे की गन्दी सियासत कब सिर उठा ले और अचानक इसकी कीमत किसे चुकानी पड़ जाए, कौन कह सकता है?