बिहार में शुक्रवार को मवेशी चोरी की घटना में भीड़ द्वारा एक मुस्लिम और दो अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को करीब 4.30 बजे सारण जिले के पैगंबरपुर गांव में पीट-पीट मार दिया गया. मामले की जानकारी मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची लेकिन तब तक दो लोगों की मौत हो चुकी थी और तीसरे की मौत अस्पताल ले जाने क्रम में हो गयी.
इस घटना पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि इसे “mob lynching” के मामले के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि तीन लोगों को पशु चोरी करते हुए पकड़ा गया था.
हमारे ख्याल से मुख्यमंत्री साहेब को मॉब लिंचिंग की परिभाषा नहीं आती है.
लिंचिंग वो है जो उन्माद और नफरत भरी भीड़ द्वारा किया जाने वाला कुकृत्य है, जो बिना मुकदमा या बिना न्यायिक नियमों का पालन किये बगैर किसी को मारना चाहती हैं, क्योंकि उनका मानना है कि उस व्यक्ति ने अपराध किया है.
आसान भाषा में कहें तो, भीड़ द्वारा किसी की हत्या करने पर उसे मॉब लिंचिंग की घटना कहते हैं. लेकिन सुशासन बाबू को शायद ये नहीं पता है.
उन्होंने कहा कि, “यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. लेकिन इसे मॉब लिंचिंग के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. मारे गए लोग नट (एक अनुसूचित जनजाति समूह) के थे और उन्हें मारने वाले लोग दलित वर्गों से संबंधित हैं,” यह बात नीतीश ने ThePrint को बताया. “घटना तब हुई जब तीनों को रंगे हाथों चोरी करते हुए पकड़ा गया. इससे गुस्साए ग्रामीणों ने उनकी पिटाई कर दी जिससे उनकी मौत हो गई. यह मूल रूप से स्थानीय विकास के कारण उत्पन्न हुई घटना है.”
साहेब मरने वाले अनुसूचित जनजाति व मुस्लिम समुदाय से हैं और मारने वाले दलित हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसे हम मॉब लिंचिंग की घटना नहीं कहें. ज़रूरी नहीं कि घटना अगर सांप्रदायिक हो तभी उसे मॉब लिंचिंग की घटना कही जाएगी.
अपनी राजनीतिक इमेज को बचाने के लिए दिया गया यह बयान कि, घटना तब हुई जब तीनों को रंगे हाथों चोरी करते हुए पकड़ा गया. इससे गुस्साए ग्रामीणों ने उनकी पिटाई कर दी जिससे उनकी मौत हो गई. यह मूल रूप से स्थानीय विकास के कारण उत्पन्न हुई घटना है.”
पुलिस में बताया कि मामले में FIR दर्ज कर ली गयी है,तीन लोगों को चिन्हित कर गिरफ्तार किया गया है और बाकि लोगों के बारे में पता लगाया जा रहा है.
मामले को इस तरीके के बयान से कहीं न कहीं, जाने अनजाने में मॉब लिंचिंग की घटना न बता कर आप जान से मार देने वालों को ताकत प्रदान कर रहे हैं और उनके जुर्म को जायज़ बता रहे हैं.
मरने वालों की पहचान राजू नट, बीड्स नट और नौशाद कुरैशी के रूप में की गई है.
एक समाचार संस्थान के रिपोर्ट के हवाले से, सत्तारूढ़ जद (यू) -बीजेपी सरकार के एक मंत्री ने कहा कि इस घटना को भीड़ की संज्ञा नहीं दी जा सकती. मंत्री ने जोर देते हुए कहा कि इसमें मुस्लिम लोगों को “जय श्री राम” का जाप करने के लिए मजबूर करने वाली भीड़ शामिल नहीं थी, उन्होंने कहा कि यह बस “कानून व्यवस्था” का एक मामला था.
मंत्री जी का नाम नहीं था लेकिन मंत्री जी को भी लगता है कि, जिस घटना में सांप्रदायिक गतिविधियां मौजूद हों बस उसे ही मॉब लिंचिंग कहा जा सकता है.
ऐसा नहीं है कि ये बिहार में नट और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हुई पहली घटना थी.
2007 में, वैशाली जिले के राजा पकर गांव में 10 नट युवकों को चोरी के अफवाह में मार दिया गया था. पिछले साल सांप्रदायिक घटना में दौरान, 82 वर्षीय ज़ैनुल अंसारी को सीतामढ़ी जिले में भीड़ द्वारा मार कर जला दिया गया था.
नीतीश सरकार ने पिछले साल भीड़ द्वारा मारे गए लोगों के परिवारों के लिए 3 लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा की थी.
लेकिन अब जो नीतीश कुमार कह रहे हैं कि यह मॉब लिंचिंग का मामला नहीं है तो क्या तीनो के परिवारों मुआवज़े से भी वंचित होना पड़ेगा.
दी वायर के रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीणों का कहना है कि ये चारों शख्स किसी के घर में मवेशी चुराने के लिए घुसे थे, तभी इन्हें पकड़ लिया गया. इसके बाद सभी ने मिलकर इनकी पिटाई कर दी, जिससे इनकी मौत हो गई.
वहीँ न्यूज18 की रिपोर्ट के मुताबिक, मृतक के परिजनों का कहना है कि मृतक चोरी की घटनाओं में संलिप्त नहीं थे और उन्हें साजिश के तहत मारा गया है.
एक राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में किसी घटना पर ऐसे बयान देना जहां, साफ़ तौर से देखा जा सकता है की तीनो की मौत भीड़ द्वारा पिटाई करने से हुई है.
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