2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद पार्टी में विरोध का बिगुल बज चूका है, पार्टी नेता एक-दूसरे के सिर पर हार का ठीकरा फोड़ रहे हैं. महागठबंधन में सीटों के बंटवारे से लेकर पार्टी नेतृत्व पर ही सवाल उठाये जा रहे हैं. पूर्व सांसद फुरकान अंसारी, विधायक डॉ. इरफान अंसारी के साथ-साथ पार्टी के कई बड़े और छोटे नेता भी अब आवाज़ उठा रहे हैं. ताजा घटनाक्रम में झारखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार ने पार्टी पद से इस्तीफे दे दिया है.
झारखंड की 14 सीटों पर महागठबंधन के बीच सीटों के बंटवारे के तहत कांग्रेस ने सात लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ा था. इनमें से सिर्फ सिंहभूम की सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी गीता कोड़ा ने जीत हासिल कि है. बाकी छह सीटों पर कांग्रेस को हार नसीब हुई.
डॉ. अजय कुमार ने प्रदेश कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह को अपना इस्तीफा सौंपा. इससे पहले डॉ. अजय कुमार ने ट्वीट करते हुए अपने पद से इस्तीफे की पेशकश की थी.
झारखंड में लोकसभा चुनाव में एनडीए को हराने के लिए कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, झारखंड विकास मोर्चा और राजद ने एक दूसरे से हाथ मिलाया था. चुनाव में महागठबंधन को 14 में से केवल 2 सीट पर ही सफलता मिली. सिंहभूम से गीता कोड़ा के अलावा राजमहल सीट से झारखंड मुक्ति मोर्चा के विजय हांसदा के दमन में जीत आई.
ये कोई पहली बार नहीं हो रहा है जब-जब कांग्रेस की करारी होती है तो वैसे नेता की भी जुबान खुल जाती हो जो चुनाव के दरम्यान नारा तक ना लगा पाते हो, जिनका जनाधार केवल खुद तक ही सीमित है. कहते हैं कि जब से कांग्रेस की बागडोर डा. अजय कुमार ने थामी थी तब से विरोध का तुफान थम नहीं रहा था. वजह साफ है कांग्रेस के सीनियर लीडर पार्टी को अपने तक सीमित रखना चाहते है. साथ ही आज की नयी तकनीकी राजनीति से उनका कोई लेना-देना नहीं है.
झारखंड कांग्रेस के सबसे बड़े नेता सुबोध कांत सहाय कभी राज्य भर के कार्यक्रताओं में दम भरते नहीं दिखे. रांची से बाहर निकल कर खुद को एक राज्य के नेता के तौर पर जिम्मेदारी से बचते रहे आखिर क्यों ? पूर्व सांसद फुरकान अंसारी का मानना है कि कांग्रेस को हार पर आत्ममंथन करने की जरूरत है. पार्टी को चुनाव में जिस प्रकार हार से नुकसान हुआ है उससे जरूरी है कि नेताओं को कार्यकर्ता के रूप में पूरी मेहनत से काम करना होगा.
प्रदेश कांग्रेस के नेता और राज्य सरकार की पूर्व मंत्री बन्ना गुप्ता ने डॉ. अजय को निशाना साधते हुए कहा कि जब तमाम निर्णय लेने की छूट अध्यक्ष की थी, तो खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेने के लिए भी उन्हें आगे आना चाहिए.
फुरकान अंसारी ने आरोप लगाया था कि नेताओं ने गठबंधन कर लिया, लेकिन विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं का गठबंधन नहीं हुआ। इस पर मंथन होना चाहिए। प्रदेश नेतृत्व हार के कारणों की समीक्षा करेंगे। यह भी देखना होगा कि टीम ठीक से तैयार क्यों नहीं हुआ? उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस ने घुटने नहीं टेके हैं। नए सिरे से विधानसभा चुनाव की तैयारी में पार्टी लगेगी। लोकसभा चुनाव की हार का बदला विधानसभा चुनाव में लेंगे।
सवाल ये भी है कि साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं, संगठन में जोरदार खींचतान जारी है. अब यहां सुबे की बागडोर कौन थामेगा, कौन कांग्रेस को मुद्दों के आधार पर सड़क तक लाएगा, ऐसे न जाने कितने सवाल है जो रांची से दिल्ली कर शोर मचा रहे हैं.