2019 के चुनाव में बीजेपी को जैसी जबरदस्त जीत हाथ लगी है, उसने राजनीतिक पंडितों के अनुमानों को सीधे-सीधे धाराशायी किया है, 2014 के चुनावों के बाद भारत के लोकतंत्र में जिस तरह के नतीजे सामने आये और बीजेपी की तुलना में गैर-एनडीए बौना दिखा, उसने राजनीतिक पंडितों को भी चकरा दिया है, क्योंकि कहां 2014 में बीजेपी को मिले 18 करोड़ वोट और कहां अब उसकी झोली में आये 22 करोड़ वोट जैसा गजब का समर्थन का सैलाब. मोदी ने जैसे विपक्ष का साम, दाम, दंड और भेद- उससे सबकुछ छीनकर उसे लोकतंत्र में भटकने के लिए छोड़ दिया हो. वोट शेयर भी पहले 31.5% था जो उछलकर 37.5% पर जा पहुंचा. मौजूदा सरकार की 6% से अधिक वोटों की यह हिस्सेदारी जादूगरी नहीं, बल्कि इसे समझदार और महान जनादेश यानी ग्रेट मैंडेट के साथ वापसी कहना ज्यादा सही है. अब इसकी तुलना कांग्रेस के वोट शेयर से करें तो 2014 में कांग्रेस को 19% के करीब वोट मिले थे. लेकिन इस बार उसके खाते में सिर्फ 0.3% की बढ़ोतरी बताती है कि इंडिया का मतदाता उसे चोटी पर पहुंचकर सिंघासन पर बिठाता है, तो लीवर की उस डोर को खींचता भी है, जो लोकतंत्र की रट लगाने वालों के साथ करना जरूरी माना जाता है. ये सारे जोड़-घटाव अभी फाइनल नहीं हैं, क्योंकि चुनाव आयोग ने अभी आखिरी आंकड़े जारी नहीं किये हैं.
अंतिम नतीजे भले ही अब तक न आ पाए हों, लेकिन जो भी सामने है, उससे कांग्रेस का वोट शेयर आगे बढ़ता तो नहीं ही दिखता. विपक्षी दलों का वोट शेयर ठीकठाक-सा कम हुआ दिख भी रहा है. हमारे कुल 60-65 करोड़ वोटरों में 22 करोड़ वोटर्स ने बीजेपी को ही वोट देने का मन बना लिया था और मोदी विरोधी लहर के नाम पर कांग्रेस और रीजनल दल या उनके मेलजोल वाली इकाइयां एंटी इनकंबेंसी, किसानों का गुस्सा, जातिगत जोड़तोड़ जैसे पुराने और घिसे-पिटे फॉर्मूले को नहीं माना, उसने भी मोदी एंड कंपनी के झंडे को ऊंचा उठकर लहराने और विपक्ष के सपने को ध्वस्त करने के गजब की ताकत दिखाई, क्योकि ज्यादातर वोटरों ने मन में ठान रखी थी कि मोदी को एक मौका और देना तो बनता ही है.