भारत में छात्रों की आत्महत्या की घटना लगातार बढ़ रही हैं. जिसका कारण माता – पिता द्वारा बच्चों पर पढ़ाई का दवाब डालना हैं. सभी पैरेंट्स यह चाहते हैं कि उनके बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त कर डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक बनें. माता – पिता अपने बच्चों को ऑल राउंडर बनने के लिए प्रेरित करते हैं, जिस वजह से उनके बच्चों की जिंदगी सफल होने के बजाय एक असफल कहानी बनकर रह जाती हैं.
परिवार के दवाब की वजह से देश में छात्रों की आत्महत्याओं के पीछे परीक्षा में पास न होना सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक हैं. माता – पिता अपने बच्चे की सीखने की क्षमताओं को पहचानने में व विचार करने में पीछे रह जाते हैं. इस बात को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि शैक्षणिक दवाब का एक बड़ा हिस्सा माता-पिता की तरफ से आता है.
छात्रों पर पैरेंट्स के दवाब व तनाव के सबसे ज्यादा उदहारण महाराष्ट्र और तमिलनाडु में देखने को मिलेंगे. जहाँ बच्चों को माता-पिता द्वारा 10 वीं कक्षा के बाद विज्ञान और गणित लेने के लिए मजबूर किया जाता है, ताकि भविष्य में उनका बच्चा डॉक्टर या इंजीनियर बन सकें.
बच्चों की कला रुचि के विकल्प को नकार दिया जाता है. बच्चों की वृद्धि के लिए खेल और शारीरिक गतिविधियां भी जरूरी हैं, ताकि उनका मानसिक तनाव कम हो सकें.
क्या कहते हैं आंकड़े
- गांव के मुकाबले शहर में अमीर और शिक्षित परिवार के छात्रों में आत्महत्या करने की संख्या अधिक पाई गई हैं.
- भारत में सबसे ज्यादा विद्यार्थी महाराष्ट्र में आत्महत्या करते हैं. वर्ष 2016 में 1350 छात्रों ने महाराष्ट्र में आत्महत्या की थी.
- इसके बाद पश्चिम बंगाल में 1147 छात्रों ने खुदकुशी की थी.
- तमिलनाडु में 981 विद्यार्थियों ने सुसाइड किया था.
- पश्चिम बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ दे कहते हैं कि घरवालों के दबाव में अपनी मर्जी का कोर्स नहीं चुन पाने वाले छात्र मानसिक तनाव की चपेट में आ जाते हैं. जिससे कि आत्महत्या की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.
छात्रों की आत्महत्या पर रोक के उपाय
- माता-पिता को अपने बच्चों से खुलकर बातचीत करनी चाहिए. अपने बच्चों के साथ दोस्त की तरह बात करनी चाहिए.
- बच्चों को ऐसी सलाह दे जो कि उन्हें लगे उन पर दवाब नही हैं. ऐसी सलाह बच्चों को प्रेरित करती हैं.
- बच्चों को प्रोत्साहित करें, ताकि वह आत्मविशवासी, और मेहनती बनें