टेक्सटाइल सेक्टर ने विज्ञापन छपा कर नुकसान और बेरोजगारी का किया दुःख बयां, क्या देश बदल रहा है ?
आज(20/08/2019) को अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस के तीसरे पन्ने पर एक बड़ा सा विज्ञापन छपा है. यह विज्ञापन बाकि विज्ञापनों से अलग है. अक्सर हम अख़बारों में नौकरी की वैकेंसी का विज्ञापन छपा हुआ पाते हैं लेकिन इस विज्ञापन में नौकरी ख़त्म होने की जानकारी दी गयी है.
विज्ञापन में लिखा है कि भारतीय स्पीनिंग उद्योग सबसे बड़े संकट से गुज़र रहा है जिसकी वजह से बड़ी संख्या में नौकरियां जा रही हैं.
आधे पन्ने के इस विज्ञापन में नौकरियाँ जाने की बात के बाद, एक स्केच बना है जिसमे लोग नौकरी पाने के लिए कतार में खड़े हैं. बिलकुल वैसे ही जैसे नोटबंदी के समय लोग कतारों में खड़े थे. लेकिन सामने एक बोर्ड लगा है जिस पर NO JOBS (नौकरी नहीं है) लिखा हुआ है.
विज्ञापन के बांए तरफ नीचे बारीक आकार में लिखा है कि, एक तिहाई धागा मिलें बंद हो चुकी हैं. जो मिलें चल रही हैं वो भी भारी घाटे में हैं. उनकी इतनी भी स्थिति नहीं है कि वे भारतीय कपास (रुई) ख़रीद सकें.
साफ तौर पर विज्ञापन में लिखा गया है कि, अनुमान है कि 80 हज़ार करोड़ का कपास होने जा रहा है. इस वजह से कपास की अगली फ़सल का कोई ख़रीदार नहीं होगा. तो इसका असर कपास के किसानों पर भी पड़ेगा.
फ़रीदाबाद टेक्सटाइल एसोसिएशन के अनिल जैन ने कुछ दिन पहले कहा था कि, टेक्सटाइल सेक्टर में 25 से 50 लाख के बीच नौकरियां गईं हैं.
हालांकि इस संख्या पर यक़ीन करना थोड़ा मुश्किल था, लेकिन आज तो टेक्सटाइल सेक्टर ने सीधे सीधे नुकसान और नौकरियां न होने का विज्ञापन ही छपवा दिया.
मोदी सरकार ने 2016 में छह हज़ार करोड़ के पैकेज और अन्य रियायतों का ज़ोर शोर से एलान किया था. दावा किया गया था कि तीन साल में एक करोड़ रोज़गार पैदा होगा. लेकिन वादा पूरा नहीं हुआ, स्थिति बदल गईं और उल्टा नौकरियाँ चली गईं.
सरकार के वायदे बदल रहे हैं, अख़बार में रोजगार के जगह बेरोजगारी और नुकसान के विज्ञापन छप रहे हैं लेकिन फिर भी सरकार अपने धून में मस्त है. खेती के बाद सबसे अधिक लोग टेक्सटाइल में रोज़गार पाते हैं. वहां का संकट इतना मारक है कि विज्ञापन देना पड़ रहा है.