लगभग दो सौ वर्षों की गुलामी के बाद, दशकों तक संघर्ष जारी रहा,लड़ाई और बलिदान, सत्याग्रह और शहादत, के बाद भारत ने आखिरकार अंग्रेजों से ‘पूर्ण स्वराज’ (पूर्ण स्व-शासन) हासिल किया.
इस आज़ादी में कई लोगों ने बलिदान दिया. कुछ तो ऐसे थे जो इतिहास के पन्नो में दब रह गए.
आज हम ऐसी ही महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बताएंगे जो इतिहास के पन्नों तक सिमित रह गयी हैं.
मातंगिनी हाजरा

मिदनापुर (अब पश्चिम बंगाल) की एक स्वतंत्रता सेनानी, मातंगिनी हाजरा भारत छोड़ो आंदोलन के साथ-साथ असहयोग आंदोलन में एक प्रमुख भागीदार थी. उन्हें 1942 में तमलुक पुलिस स्टेशन के बाहर ब्रिटिश सेना द्वारा गोली मार दी गई थी.
कनकलता बरुआ

कनकलता बरुआ असम के एक क्रांतिकारी थी, जिन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था. 1942 में उन्हें ब्रिटिश पुलिस ने गोली मार दी थी.
रानी चेन्नम्मा

रानी चेन्नामन कित्तूर की रियासत (अब कर्नाटक में) की रानी थीं। वह ब्रिटिश बलों के खिलाफ विद्रोह करने वाले पहले शासकों में से एक थी.
उदय देवी

उदय देवी 1857 के विद्रोह की ‘दलित वीरांगना’ थीं. उन्होंने नवंबर 1857 में सिकंदर बाग की लड़ाई में हिस्सा लिया.
उषा मेहता

उषा मेहता एक गांधीवादी और गुजरात की एक स्वतंत्रता सेनानी थीं. वह एक बाल क्रांतिकारी थी. वह आठ साल की उम्र में ‘साइमन गो बैक’ आंदोलन में शामिल हुईं.
पारबती गिरि

पारबती गिरी एक स्वतंत्रता सेनानी और ओडिशा की एक कार्यकर्ता थीं। वह 16 वर्ष की थी जब वह भारत छोड़ो आंदोलन में सबसे आगे थी.
सावित्रीबाई फुले

सावित्रीबाई फुले महाराष्ट्र की एक सुधारवादी और समाज सेविका थीं. अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ, उन्होंने समाज में महिलाओं के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.